राम-विलाप
(बिरहा कहरवा – भजन)
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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हमका दुखी देखि नहि पावै भईया तोर करेजवा,
हमरे खातिर तू तजि डारेव मातु-पिता औ घरवा,
छोड़ आज तू राम अकेले,चले कौन डगरवा,
देखो उवल सुकौवा नाय !
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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जो मै जनतौ तुहू बिछुरबा, पिता बचन ना मनतौ,
जन्म जन्म में फिरि मिलि जैहै मातु पिता औ घर तौ,
वही कोख से फिरि ना पाईब, लछिमन तुह का अब तौ,
देखो उवल सुकौवा नाय !
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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लछिमन भईया अंखिया
खोलो, बिलखई राम तुम्हारे,
मोर करेजा मुह के आवत
बोलो कछु दुलारे,
देखो उवल सुकौवा नाय !
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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मातु सुमित्रा से का कहिबों, बोलो प्रान पियारे,
बिल्खें राम अँसुवन से विहवल, भेटें रहि रहि भाई.
उत्तर दिसि में भा किलकारी, हनुमत गयिलैएँ आई.
देखो उवल सुकौवा नाय !
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे ,देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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खिलिगे हृदय कमाल सब ही के, चहु दिसि आनंद छाई,
देखो उवल सुकौवा नाय !
हनुमत अबहीं नहीं लौऊटे, देखो उवल सुकौवा नाय !!टेक०!!
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----- सतीशचंद्र, इलाहबाद, नवम्बर,
१९६३