पुरुबी भजन – १
सीता हरन
(कहरवा )
रथवा जाय चढ़ा आकसवा, बिलखय सिया परनवा नाय !
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
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दुष्ट रावनवा दंडक बन माँ, देखि के माय अकेली !
छल से छल कै जनकदुलारी, चला गगन पथ मेली !
राम राम हा राम हमारे, हम अनाथ अब भयिली,
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
--०—
लछिमन कछु दोस नः तोहरा, क्षमा करहु मोहि भईया !
कहेव राम से हे बनदेबी, हाथ कसाई गईया !
आरत हरन राम जन नायक, लागहु बेगी सहिया,
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
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दसो दिसावों दिग्गज डोलिय, हिलि गये सेस सोवयिया !
तिहूँ लोक में करुना व्यापी, हरि गईं सीता मैया !
जड़ – चेतन सब चित्र लिखे से. बिलखई सीता मैया !
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
---०---
बन असोक माँ कछु दिन रहिके. सहिके दुसह बिपतिया !
लंका दहन मरण रावन कै, देखिन राम सुरतिया !
होय कबहुँ अब बाल न बांका, जेकर राम सहैय्या हो !
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
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राथवा जाय चढ़ा आकाशवा,बिलखय सिया परनवा नाय !
बिलखय सिया परनवा नाय !! टेक० !!
------सतीशचन्द्र, इलाहबाद, नवम्बर,
१९६३
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