Monday, October 28, 2013

राधा का पश्चाताप

राधा का पश्चाताप
(कहरवा बिरहा)

राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखारिया नाय !!टेक०!!
राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखारिया नाय !!टेक०!!
---०---
राम कसम ओरहन ना देतौ, केतना माखन खईहैं !
मोरे कान्ह के कोमल अँगा, साठी हाथ परि जैहैं !
राधा रोवै  औ पछितावे, पकरे नन्द दुवरिया नाय!!
राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखारिया नाय !!टेक०!!
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आगि लगे ऊ गगरी-मथनी, आग लगे ऊ दहिया !
जेकरे खातिर मोरे कान्ह कं, दंड दिहिन है  मईया !
हे दैया अब लगो सहैय्या, क़तर नयन पुतरिया नाय !!
राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखरिया नाय !!टेक०!!
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धिक् धिक् है तुहिका ब्रिज ग्वालिन, यतना कान्ह सतायो !
दधि-माखन तुह्का हम देबय, जेहि लगी ओरहन लायो !
हे मईया अब बक्सों ओंका, लरिका कान्हा नाय !
राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखारिया नाय !!टेक०!!
राधा झाँकें हाय कोठारिया, कान्हा बन्हा ओखारिया नाय !!टेक०!!
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-------------------------सतीशचंद्र, इलाहबाद, ऊ. प्र. नवम्बर.१९६३

Saturday, October 26, 2013

भजन - बाजे हो ता-ता-धिन्ना

भजन 

(कहरवा)


बाजे हो ता ता धिन्ना गगन में 


बाजे हो ता-ता-धिन्ना गगन में !!टेक० !!
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भादों महीना पाख अँधेरी
अठवीं तिथि में कजरी घेरी,
आधि राति में मथुरा नगरि  में
देखो उई गईल चंदा गगन में !
बाजे हो ता-ता-धिन्ना गगन में !!टेक० !!

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दीन हीन बसुदेव देवकी
सोचें गति सतवे लालन की
आठवें  गरभ में किरिसना जन्में
भे आनन्द तीन लोकन में
बाजे हो ता-ता-धिन्ना गगन में !!टेक० !!

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छवि सागर हरि रूप बिलोकी
नव अम्बुज अंबक फल नीकी
सोरहो कला से चारो भुजा से
प्रगट भये पहरन में
बाजे हो ता-ता-धिन्ना गगन में !!टेक० !!

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जब जब होए भरम की हानी
बाढई असुर महा अभिमानी
भगत बचावै भगवान आवै
तोरि सात तालन में
बाजे हो ता-ता-धिन्ना गगन में !!टेक० !!

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Friday, October 18, 2013

शंकर शक्ति नमामि

भजन

शंकर शक्ति नमामि

जब कोई दूजी राह न हो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो ! टेक ० !

जब आस निरास में उब  चलो
जब पीर पियास में डूब चलो,
जब जनि परय जगत मित्थ्या
व्यथा है वृथा तुम जानो यथा
तब ये ही उपाय तू जाने रहो -
तब शंकर शक्ति नमामि कहो !१! 
जब कोई दूजी राह न हो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो ! 
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माया रजनी ममता सजनी 
यूँ घुले कि न सूझि परय करनी,
भव सागर में न दिखे तरनी 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो !२!
तब एक विकल्प तू जनि रहो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो
जब कोई दूजी राह न हो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो
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रस चाटी चटक जो टूटे दसना
जब "मै" "मोहि" "तै" से थके रसना 
मिथ्या बचना से चहो बचना
तो एक सहारा तू जानि रहो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो !३!

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पग थाके न दीखे कोई भी दिया
न हिया न पिया न दिया में लिया 
जब अत्ति सताने लगे ये जिया 
तब इस मोल मंत्र को जनि रहो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो !४!
जब कोई दूजी राह न हो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो
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जब ओढ़ी चदरिया को बुन बुन बुन 
विषया कर दे जब सुन सुन सुन 
जब हारी चलो सब सुन सुन सुन 
एक उपाय को  जानि रहो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो !५!
जब कोई दूजी राह न हो 
तब शंकर शक्ति नमामि कहो
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------ सतीशचन्द्र, इलाहबाद, ऊ.प्र.भारत, नवंबर १९६३ 


Tuesday, October 15, 2013

राम बन गमन - बिरहा

राम वन गमन 



(बिरहा)

राम चले बनवा गोडवा, झलकय झलकवा हाय ! टेक !

राम चले बनवा गोडवा, झलकय झलकवा हाय;
जवन पैया माखन मिसरी, उहै घुमैय डगरी डगरी,
सगरी अजोध्या नगरी, परल बा उचटवा  हाय !१!

राम चले बनवा गोडवा, झलकय झलकवा हाय
राजा आपन प्रान छोड़ई, मईया दुवारिया दऊरें,
भरत भुवाल हेरें, भईया मोर कहवाँ हाय !२!

धनि धनि सीता लछिमन ,राम के चरितवा धनि,
रघुकुल रीती घूमय , धूपवा बतासवा हाय !३! 

राम चले बनवा गोडवा झलकय झलकवा हाय !

------सतीशचन्द्र, इलाहबाद, ऊ.प्र. भरत, नवंबर १९६३ 

बाबू बिसनू


बाबू बिसनू 

अरे बाबू बिसनू किसनू सुना हमार  कबित्त
 तू तो परमेसर ठेका सबकै लेहले हया  !१!

हया हया सब कहै हम कहीं नाही हया 
हया तो हया नाही बेहया बनल हया !२!

केतना थकास कौन लाधिया धकेलला है
सूती निः चिंत सेवा मेहेरी से करवात हया !३!

दुनिया में आगि लागि द्वापर बीत कलजुग आय
अबहीं ले भला भईल घरघुसना बनल हया !४!
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-------सतीशचंद्र, इलाहबाद, ऊ, प्र.भारत नवंबर १९६३ 

Monday, October 14, 2013

सुमिरनी -समर्पण

वर्ष १९६२-६३ में मैंने अचानक स्लेट पर कुछ लोकगीत-भजन की पंक्तियाँ लिखी ! मेरे माता-पिता को लोकगीतों से बड़ा प्यार था और मेरी माताजी (बबुना देवी) अक्सर घर पर ही भजन संध्या का आयोजन करती रहती थी ! चुकी मै गा सकता था इसलिये वे कभी कभी मुझसे कोई भजन गाने को कहती थी ! कहरवा, कजरी,देढ़ताला, कवित्त  आदि अवधी लोकगीत की परंपरा वे समझती थी, जानती थी और बेहद पसंद करती थी. बस उन्ही की खुशी के लिए मैंने कुछ गीत लिखे जो एक से बढकर एक , उन्हें पसंद आये और उन्होंने गर्व से उन्हें बाबूजी (मेरे पिता) को भी सुनवाए ! एक के बाद एक लिखते करीब ३०-३५ कवित्त, कहरवा, भजन आदि मैंने बना डाले और आश्चर्य , ये सब के सब कुल लगभग बीस दिन में ही हो गया ! उन सबको उन्होंने इकत्र कर १० पन्नों की एक पुस्तिका  आपने नाम, बबुना , से छपाने का संकल्प लिया (जो पूरा न हो सका) ! १९६३ के अंत में मेरे बाबूजी के देहांत होने के बाद वह संकलन विस्मृति  के गर्भ में चला गया, अथवा, अन्य लोकगीतों की तरह लोकार्पित हो गया ! मेरे कुछ सुहृद ने उने सहेज के रखा -- पूरा का पूरा नहीं -- बस उनता, जितना उन्हें पसंद आया ! मेरे अनुज, "मनीष", ने मुझे आपने पास इकत्रित स्फुट गीत फोटोकापी करा के दिए और कहा की उन्हें ब्लॉग में पोस्ट कर दूँ! बस ! प्रस्तुत ब्लॉग का यही उद्देश्य है और विधेय भी ! कुछ अन्य कृतियाँ भी इसी में है- जो स्लेट लेखन वाली परंपरा के नहीं है, नितांत व्यक्तिगत है, वो भी परोसने का इरादा है ! कुछ प्रतिक्रिया मिले तो आगे का पथ प्रशस्त हो ! अतः आप की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी; अस्तु !



सुमिरिनी


(दोहा)

सुमिरि राम हनुमान सिव, संकर सुँ गनेस !
रचहु भजन ठुमरी कृपा,स्वीकृत करहु महेस !१!

अधम तन औ मूढ मन,ता पर करहु नमामि तवं !
त्वदीय वस्तु गोविन्दम, तुमर्मेव समर्पियामी !२!

तीरथराज  प्रयागपुर कराहू प्रकाशित गीत !
दासी "बबुना " निरगुना, हे राधा के मीत !३!
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मनई कै चोला 

(कवित्त)

मनई क चोला दई काया क झोला दई,
लोला दई लाल लाल कब ले नचाईबा तू !

करनी नहीं हमरे, तो तुहरहू दरेग नाही
नोन-तेल-लकड़ी में कबतक नचयिबा तू !

भक्ति नाही सक्ति नाही बुद्धि नाही हाल खस्ती
जबरदस्ती भजबै हम, कहा ले बचयिबा तू !

गोहरयिब हम दिन रतिया देखी लेब तुहार सनवा
कनवा में डारि तेल, कब ले मठेथबा तू !! 


----- सतीशचंद्र, इलाहबाद, ऊ.प्र.भारत, नवंबर १९६३ 
क्रमशः